आखिर क्यूँ एलोपैथिक उपचार की अपेक्षा आयुर्वेदिक उपचार ज्यादा अच्छा है यहाँ जाने
आयुर्वेदिक तरीके से किये गए उपचार और एलोपैथिक तरीके से किये गये उपचार में सबसे बड़ा अंतर ये है कि आयुर्वेदिक तरीके से किया गया उपचार हमेशा के लिए रोग को जड़ से मुक्त कर देता है जबकि एलोपैथिक उपचार से जब तक दवाओं का असर रहता है तब तक रोगी ठीक रहता है और जब दवा का असर ख़त्म तो फिर से रोग पनपने लगता है इसीलिए आयुर्वेदिक उपचार को ही सर्वोत्तम माना गया है|
हमारे यहाँ राठी आयुर्वेदिक सेंटर में डॉ नरेन्द्र राठी बताते हैं बहुत सारे लोग ऐसे चिकित्सक के पास परामर्श लेने लगते हैं जिन्हें ज्यादा अनुभव नहीं होता और कई सारी दवाओं की आजमाइश खुद वो मरीज पर करते हैं जिससे मरीज पर साइड इफ़ेक्ट होने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है और बहुत सारे पैसे खर्च करने के बाद भी उन्हें कोई आराम नहीं पहुँचता है स्वास्थ्य के साथ साथ वो अपना समय भी व्यर्थ करते हैं और लोगों की सुनी सुने बातों पर विश्वास करने लगते हैं कि ये तो लाइलाज बीमारी है | डॉ नरेन्द्र राठी के पास २० साल का अनुभव है और अबतक हजार से ज्यादा मरीज ठीक कर चुके हैं राठी सर बताते हैं कि इसका सिर्फ और सिर्फ एक मात्र इलाज आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट ही है हमारे यहाँ परामर्श लेना बिलकुल निःशुल्क है और रोगी के कल्याण के लिए हम यहाँ वर्क करते हैं जिससे बहुत सारी जगहों से परेशान लोगों की समस्याओं का निदान हो सके |

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मिर्गी क्या है?
मिर्गी एक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार है। इसमें मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका (Nerve Cell) गतिविधि बाधित हो जाती है, जिसके कारण दौरे या कुछ समय तक असामान्य व्यवहार, उत्तेजना और कभी-कभी बेहोशी हो जाती है। मिर्गी संक्रामक नहीं है और मानसिक बीमारी या मानसिक कमज़ोरी के कारण नहीं होती है। कभी-कभी गंभीर दौरे के कारण मस्तिष्क को क्षति हो सकती है, लेकिन अधिकांश दौरे मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव नहीं डालते हैं। बीमारी से होने वाली मस्तिष्क क्षति से लेकर असामान्य मस्तिष्क विकास तक मिर्गी के कई संभव कारण हैं।इसमें जेनेटिक्स भी एक भूमिका निभा सकता है। ब्रेन ट्यूमर, अधिक शराब पीने से होने वाली बीमारी, अल्जाइमर रोग, स्ट्रोक और दिल के दौरे सहित अन्य विकारों से मस्तिष्क को होने वाली क्षति के कारण भी मिर्गी विकसित हो सकती है। अन्य कारणों में सिर की चोट, जन्म के पूर्व (गर्भावस्था के दौरान) की चोट और विषाक्तता शामिल है। मिर्गी के दौरे कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें आंशिक दौरे, माध्यमिक दौरे और सामान्यीकृत दौरे (Generalized Seizures) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।एक हल्के दौरे को पहचानना मुश्किल हो सकता है। यह कुछ सेकंड के लिए रह सकता है, जिसके दौरान आपकी चेतना कम हो जाती है। तेज़ दौरे ऐंठन और मांसपेशियों में अनियंत्रित झटकों का कारण बन सकते हैं तथा यह कुछ सेकंड से लेकर कुछ मिनट तक रह सकते हैं। एक तेज़ दौरे की अवधि में कुछ लोग भ्रमित हो जाते हैं या चेतना खो देते हैं। इसके बाद हो सकता है कि आपको इस दौरे के बारे में कुछ याद भी न रहे।दौरों को बढ़ाने में कम सोना, शराब का सेवन, तनाव या मासिक धर्म चक्र से संबंधित हार्मोनल परिवर्तन शामिल है। मिर्गी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन यह छोटे बच्चों और अधेड़ व्यक्तियों में अधिक आम है। यह बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक देखी जाती है। मिर्गी का इलाज करने के कई अलग-अलग तरीके हैं, जिनमें ध्यान (मेडिटेशन), मिर्गी का इलाज करने के लिए सर्जरी या मिर्गी की अंतर्निहित स्थितियों का उपचार, प्रत्यारोपित उपकरण और आहार शामिल है। मिर्गी से पीड़ित ज्यादातर लोग पूरी तरह से सक्रिय जीवन जीते हैं। लेकिन उनके जीवन को खतरे में डालने वाली दो स्थितियों का उन्हें जोखिम है – स्टेटस एपिलेप्टिकस (जब एक व्यक्ति को असामान्य रूप से लंबे समय तक दौरा पड़ता है या दौरों के बीच पूरी तरह से चेतना नहीं रहती है) और अचानक होने वाली अस्पष्टीकृत मृत्यु।Book Appointment

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि रोग के वैश्विक बोझ का 0.5% या 7 मिलियन के लिए मिर्गी जिम्मेदार है। सिर की चोट दुनिया भर में मिर्गी का एक सामान्य कारण है। भारत में प्रति हजार आबादी में लगभग 14 लोगों के मिर्गी से पीड़ित होने की संभावना है, जिसका बच्चों व युवा-वयस्कों और ग्रामीण क्षेत्रों में होने का उच्च अनुमान है।
- मिर्गी के प्रकार – Types of Epilepsy in Hindi
- मिर्गी के लक्षण – Epilepsy Symptoms in Hindi
- मिर्गी के कारण – Epilepsy Causes in Hindi
- मिर्गी के बचाव के उपाय – Prevention of Epilepsy in Hindi
- मिर्गी का परीक्षण – Diagnosis of Epilepsy in Hindi
- मिर्गी का इलाज – Epilepsy Treatment in Hindi
- मिर्गी की जटिलताएं – Epilepsy Complications in Hindi
- मिर्गी में परहेज़ – What to avoid during Epilepsy in Hindi?
- मिर्गी में क्या खाना चाहिए? – What to eat during Epilepsy in Hindi?
- मिर्गी की दवा – Medicines for Epilepsy in Hindi
- मिर्गी की ओटीसी दवा – OTC Medicines for Epilepsy in Hindi
- मिर्गी के डॉक्टर


आखिर क्या हैं मिर्गी के लक्षण
:- आयु – मिर्गी की शुरुआत प्रारंभिक बचपन और 60 वर्ष की उम्र के बाद सबसे आम है, लेकिन यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है।
- पारिवारिक इतिहास – यदि आपका मिर्गी से सम्बन्धित पारिवारिक इतिहास है, तो आप में दौरों की समस्या के विकास का जोखिम बढ़ सकता है।
- सिर की चोटें – मिर्गी के कुछ मामलों के लिए सिर की चोटें जिम्मेदार हैं। आप सिर में लगने वाली चोटों के खतरों को कम करने के लिए कुछ बातों को अवश्य ध्यान में रखें, जैसे – कार में सवारी करते हुए सीट बेल्ट लगाएं और साइकिल चलाते समय, स्कीइंग, मोटर साइकिल की सवारी करते हुए या अन्य गतिविधियां करते समय जिनमें सिर की चोट के उच्च जोखिम होते हैं, हेलमेट ज़रूर पहनें।
- स्ट्रोक और अन्य वाहिकाओं सम्बन्धी रोग – स्ट्रोक और अन्य रक्त वाहिका (संवहनी) रोगों से मस्तिष्क क्षति हो सकती है, जिससे मिर्गी का खतरा बढ़ सकता है।
- डिमेंशिया – डिमेंशिया (मनोभ्रंश) रोग अधेड़ उम्र के लोगों में मिर्गी के जोखिम को बढ़ा सकता है।
- मस्तिष्क संक्रमण –
मिर्गी की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि
- ब्राह्मी
- ब्राह्मी का पूरा पौधा परिसंचरण और तंत्रिक तंत्र संबंधी विकारों में उपयोगी है।
- इसे काढ़े के रूप में या घी या तेल के साथ मिलाकर ले सकते हैं।
- इस मिश्रण का सेवन करने पर ब्राहृमी शरीर में दोष का शमन कर शोधन थेरेपी के लिए तैयार करती है। इससे याददाश्त भी बढ़ती है।
- ब्राह्मी के प्रभाव से मिर्गी में अटैक ज्यादा लंबे समय के लिए नहीं आते हैं और ज्यादा गंभीर भी नहीं होते हैं। साथ-साथ ही बार-बार अटैक आने की समस्या से भी छुटकारा मिलता है।
- ब्राह्मी की अधिक खुराक लेने पर सिरदर्द हो सकता है।
- शंखपुष्पी
- ये नसों को आराम देने वाली प्रमुख औषधियों में से एक है।
- इस पूरे पौधे का ही इस्तेमाल चिकित्सकीय उद्देश्य के लिए किया जाता है। आमतौर पर इसे जूस, काढ़े, पेस्ट और पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- मिर्गी के लक्षणों जैसे कि कमजोर याददाश्त, घबराहट और उन्मांदता (मानसिक रोग) से राहत पाने में शंखपुष्पी मदद करती है।
- ये त्रिदोष को संतुलित कर मन को शांति प्रदान करती है और गहरी नींद पाने एवं चिंता और तनाव से मुक्ति दिलाने में मदद करती है। (और पढ़ें – तनाव दूर करने के घरेलू उपाय)
- शतावरी
- मिर्गी के इलाज में शतावरी की जड़ का इस्तेमाल या तो दानों या तेल में काढ़े के रूप में किया जाता है।
- शतावरी पित्त, कफ और वात दोष को साफ करती है। ये वात दोष के कारण पैदा हुए आक्रामक अटैक (दौरे) को भी रोकती है।
- शतावरी के दानों को दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है। मिर्गी के मरीजों के लिए नास्य कर्म में शतावरी के काढ़े को तेल में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है।
- ये मस्तिष्क के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करने वाले तमस को दूर करता है।
- वच
- इस जड़ी बूटी के प्रकंद (ऐसे कंद जो जमीन के अंदर होते हैं) का इस्तेमाल तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है।
- ये याददाश्त को बढ़ाती है और मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती है और मस्तिष्क में खून के प्रवाह में सुधार लाती है।
- नास्य कर्म में वच के पाउडर को तेल के साथ डाल सकते हैं या इसे चूर्ण के रूप में खा सकते हैं। अनेक आयुर्वेदिक मिश्रणों में वच का इस्तेमाल किया जाता है।
- अगर इसे अदरक जैसी कटु जड़ी बूटियों के साथ संतुलित मात्रा में न लिया जाए तो इसकी वजह से बंद नाक की समस्या हो सकती है।
मिर्गी के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- पंचगव्य घृत
- इस मिश्रण में गौ शकृद रस (गाय के गोबर को पानी में मिलाकर छानने के बाद तैयार हुआ), गौ क्षीर (गाय का दूध), गोमूत्र (गाय का मूत्र) और गाय का घी मौजूद है। इस मिश्रण का सेवन किया जाता है।
- इसमें रसायन (शक्तिवर्द्धक), मेध्य (दिमाग को शक्ति देने वाला) और स्मृतिकर (याददाश्त बढ़ाने वाला) गुण होते हैं।
- इससे दौरे बार-बार नहीं पड़ते हैं और कम समय के लिए आते हैं। ये आक्रामक अटैक से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
- लंबे चलने वाले उपचार में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- कूष्माण्ड घृत
- इसे कूष्माण्ड, यष्टिमधु और घृत से तैयार किया गया है।
- इस मिश्रण में मेध्य रसायन गुण मौजूद हैं और ये मानसिक कार्यों में सुधार लाता है।
- स्नेहपान (शरीर को अंदर से चिकना करने के लिए औषधि का पान) के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- ये मिश्रण बेचैनी और चिंता को कम कर मिर्गी के मरीजों को राहत प्रदान करता है।
- मंस्यादि क्वाथ
- इस काढ़े को अश्वगंधा, जटामांसी और अजवाइन से तैयार किया गया है।
- आमतौर पर इसे खाली पेट लिया जाता है।
- ये तनाव और चिंता से राहत दिलाता है जिससे मिर्गी के इलाज में मदद मिलती है।
- जटामांसी मन को शांत करती है और अजवाइन मस्तिष्क के तमस एवं रजस दोष को ठीक करती है।
- अश्वगंधा में मेध्य गुण होते हैं।
- इस मिश्रण का सेवन सुरक्षित और असरकारी है।
- सारस्वत चूर्ण
- इस पॉली-हर्बल मिश्रण में कुठ की सूखी जड़ और अश्वगंधा, लवण (सेंधा नमक), अजवाइन, जीरक (जीरा), कृष्ण जीरक (काला जीरा), पिप्पली और मारीच (काली मिर्च) शामिल है। इसके अलावा इसमें शुंथि (सोंठ) और वच का सूखा प्रकंद, पाठा का पूरा पौधा सूखा मौजूद है। इन सभी सामग्रियों को ब्राह्मी के ताजे रस में मिलाकर सारस्वत चूर्ण तैयार किया जाता है।
- इन सभी सामग्रियां मेध्य रसायन प्रभाव रखती हैं और मिर्गी के इलाज में असरकारी हैं।
- ये मिश्रण दौरे पड़ने को नियंत्रित करता है और तनाव एवं चिंता को दूर कर मन को शांति प्रदान करता है।
आयुर्वेद के अनुसार एपिलेप्सी होने पर क्या करें और क्या न करें
क्या करें
- गेहूं और पुराने शलि चावल खाएं।
- मुद्गा (मूंग दाल), काले चने, दूध और घृत का सेवन करें।
- पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। (और पढ़ें – कम सोने के नुकसान)
- योग और ध्यान की मदद से मन एवं मस्तिष्क को शांत रखें।
क्या न करें
- वात बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि मिर्च, आलू और कलय (पीले मटर) खाने से बचें।
- बासी भोजन न करें।
- विरुद्ध अन्न (अनुचित खाद्य पदार्थ) जैसे कि मछली के साथ दूध न खाएं।
- शराब से दूर रहें। (और पढ़ें – शराब की लत छुड़ाने के घरेलू उपाय)
- चिंता और तनाव से दूर रहने का प्रयास करें।
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल त्याग और पेशाब को रोके नहीं।
- ज्यादा गहरे पानी, ज्यादा ऊंचाई पर खड़े होने और आग वाली जगहों के आसपास न जाएं। इस तरह की एडवेंचर एक्टिविटीज करने से बचें।

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