मिर्गी की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि
- ब्राह्मी
- ब्राह्मी का पूरा पौधा परिसंचरण और तंत्रिक तंत्र संबंधी विकारों में उपयोगी है।
- इसे काढ़े के रूप में या घी या तेल के साथ मिलाकर ले सकते हैं।
- इस मिश्रण का सेवन करने पर ब्राहृमी शरीर में दोष का शमन कर शोधन थेरेपी के लिए तैयार करती है। इससे याददाश्त भी बढ़ती है।
- ब्राह्मी के प्रभाव से मिर्गी में अटैक ज्यादा लंबे समय के लिए नहीं आते हैं और ज्यादा गंभीर भी नहीं होते हैं। साथ-साथ ही बार-बार अटैक आने की समस्या से भी छुटकारा मिलता है।
- ब्राह्मी की अधिक खुराक लेने पर सिरदर्द हो सकता है।
- शंखपुष्पी
- ये नसों को आराम देने वाली प्रमुख औषधियों में से एक है।
- इस पूरे पौधे का ही इस्तेमाल चिकित्सकीय उद्देश्य के लिए किया जाता है। आमतौर पर इसे जूस, काढ़े, पेस्ट और पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- मिर्गी के लक्षणों जैसे कि कमजोर याददाश्त, घबराहट और उन्मांदता (मानसिक रोग) से राहत पाने में शंखपुष्पी मदद करती है।
- ये त्रिदोष को संतुलित कर मन को शांति प्रदान करती है और गहरी नींद पाने एवं चिंता और तनाव से मुक्ति दिलाने में मदद करती है। (और पढ़ें – तनाव दूर करने के घरेलू उपाय)
- शतावरी
- मिर्गी के इलाज में शतावरी की जड़ का इस्तेमाल या तो दानों या तेल में काढ़े के रूप में किया जाता है।
- शतावरी पित्त, कफ और वात दोष को साफ करती है। ये वात दोष के कारण पैदा हुए आक्रामक अटैक (दौरे) को भी रोकती है।
- शतावरी के दानों को दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है। मिर्गी के मरीजों के लिए नास्य कर्म में शतावरी के काढ़े को तेल में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है।
- ये मस्तिष्क के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करने वाले तमस को दूर करता है।
- वच
- इस जड़ी बूटी के प्रकंद (ऐसे कंद जो जमीन के अंदर होते हैं) का इस्तेमाल तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है।
- ये याददाश्त को बढ़ाती है और मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती है और मस्तिष्क में खून के प्रवाह में सुधार लाती है।
- नास्य कर्म में वच के पाउडर को तेल के साथ डाल सकते हैं या इसे चूर्ण के रूप में खा सकते हैं। अनेक आयुर्वेदिक मिश्रणों में वच का इस्तेमाल किया जाता है।
- अगर इसे अदरक जैसी कटु जड़ी बूटियों के साथ संतुलित मात्रा में न लिया जाए तो इसकी वजह से बंद नाक की समस्या हो सकती है।
मिर्गी के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- पंचगव्य घृत
- इस मिश्रण में गौ शकृद रस (गाय के गोबर को पानी में मिलाकर छानने के बाद तैयार हुआ), गौ क्षीर (गाय का दूध), गोमूत्र (गाय का मूत्र) और गाय का घी मौजूद है। इस मिश्रण का सेवन किया जाता है।
- इसमें रसायन (शक्तिवर्द्धक), मेध्य (दिमाग को शक्ति देने वाला) और स्मृतिकर (याददाश्त बढ़ाने वाला) गुण होते हैं।
- इससे दौरे बार-बार नहीं पड़ते हैं और कम समय के लिए आते हैं। ये आक्रामक अटैक से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
- लंबे चलने वाले उपचार में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- कूष्माण्ड घृत
- इसे कूष्माण्ड, यष्टिमधु और घृत से तैयार किया गया है।
- इस मिश्रण में मेध्य रसायन गुण मौजूद हैं और ये मानसिक कार्यों में सुधार लाता है।
- स्नेहपान (शरीर को अंदर से चिकना करने के लिए औषधि का पान) के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- ये मिश्रण बेचैनी और चिंता को कम कर मिर्गी के मरीजों को राहत प्रदान करता है।
- मंस्यादि क्वाथ
- इस काढ़े को अश्वगंधा, जटामांसी और अजवाइन से तैयार किया गया है।
- आमतौर पर इसे खाली पेट लिया जाता है।
- ये तनाव और चिंता से राहत दिलाता है जिससे मिर्गी के इलाज में मदद मिलती है।
- जटामांसी मन को शांत करती है और अजवाइन मस्तिष्क के तमस एवं रजस दोष को ठीक करती है।
- अश्वगंधा में मेध्य गुण होते हैं।
- इस मिश्रण का सेवन सुरक्षित और असरकारी है।
- सारस्वत चूर्ण
- इस पॉली-हर्बल मिश्रण में कुठ की सूखी जड़ और अश्वगंधा, लवण (सेंधा नमक), अजवाइन, जीरक (जीरा), कृष्ण जीरक (काला जीरा), पिप्पली और मारीच (काली मिर्च) शामिल है। इसके अलावा इसमें शुंथि (सोंठ) और वच का सूखा प्रकंद, पाठा का पूरा पौधा सूखा मौजूद है। इन सभी सामग्रियों को ब्राह्मी के ताजे रस में मिलाकर सारस्वत चूर्ण तैयार किया जाता है।
- इन सभी सामग्रियां मेध्य रसायन प्रभाव रखती हैं और मिर्गी के इलाज में असरकारी हैं।
- ये मिश्रण दौरे पड़ने को नियंत्रित करता है और तनाव एवं चिंता को दूर कर मन को शांति प्रदान करता है।
आयुर्वेद के अनुसार एपिलेप्सी होने पर क्या करें और क्या न करें
क्या करें
- गेहूं और पुराने शलि चावल खाएं।
- मुद्गा (मूंग दाल), काले चने, दूध और घृत का सेवन करें।
- पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। (और पढ़ें – कम सोने के नुकसान)
- योग और ध्यान की मदद से मन एवं मस्तिष्क को शांत रखें।
क्या न करें
- वात बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि मिर्च, आलू और कलय (पीले मटर) खाने से बचें।
- बासी भोजन न करें।
- विरुद्ध अन्न (अनुचित खाद्य पदार्थ) जैसे कि मछली के साथ दूध न खाएं।
- शराब से दूर रहें। (और पढ़ें – शराब की लत छुड़ाने के घरेलू उपाय)
- चिंता और तनाव से दूर रहने का प्रयास करें।
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल त्याग और पेशाब को रोके नहीं।
- ज्यादा गहरे पानी, ज्यादा ऊंचाई पर खड़े होने और आग वाली जगहों के आसपास न जाएं। इस तरह की एडवेंचर एक्टिविटीज करने से बचें।
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